किसान साथियों धान की फसल में वैसे तो अनेक प्रकार के रोग एवं कीट उत्पन्न हो जाते हैं परंतु टंग्रो वायरस एक ऐसा रोग है जो भी पौधा इसकी चपेट में आ जाता है वह पौधा बोने रह जाता है, इसके अलावा कल्लो की संख्या भी कम बनती है एवं बालियों की संख्या भी कम हो जाती है एवं उनमें दाने की संख्या भी कम होती है। इस रोग को कैसे दूर करें इसके बारे में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा क्या सुझाव दिए गए हैं एवं इसका क्या कारण है इसके बारे में आज हम इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं..
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत के बड़े क्षेत्र में धान की बुवाई की जा रही है, एवं कई स्थानों पर धान का उत्पादन कम होने का प्रमुख कारण सही समय पर रोग ओर कीटों का नियंत्रण न होना है, इसलिए अधिक पैदावार हेतु इन रोगों की सही पहचान होनी चाहिए एवं समय पर रोगों को नियंत्रण करने हेतु कदम उठाए जाने जरूरी है। इन रोगों में टंग्रो वायरस ऐसा रोग है जो धान की खड़ी फसल में बेहद ही तेजी से फैलता है और फसल को बर्बाद कर देता है। जिसके कारण उत्पादन कम होने का कारण बन जाता है।
टंग्रो वायरस रोग से धान की फसल में नुकसान क्या है?
किसान साथियों कृषि विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार रोग एक्सपर्ट बताते हैं कि यदि यह रोग धान में फैल जाता है तो इससे धान बौना रह जाएगा, बालियां भी कम मात्रा में निकलेगी और जो निकलेगी उसमें भी दाने की संख्या बेहद ही कम मात्रा में होगी, यानि यह रोग पूर्ण रूप से फसल उत्पादन को कम कर देगा जिससे काफी आर्थिक हानि किसानों को होती है। इस रोग को दूर करने हेतु किसान अपना घरेलू यानि देशी जुगाड़ अपनाकर भी नियंत्रण कर सकते है।
टंग्रो वायरस रोग फैलने का क्या कारण है?
पादप रोग विशेषज्ञ के अनुसार टंग्रो वायरस का वाहक हरे रंग का फुदका होता है. यह हरा फुदका वायरस जनित पौधों पर बैठकर रस चूसता है , जिसके कारण लार्वा में वायरस पहुंच जाता है, वही यह हरा फुदका स्वच्छ पौधे पर बैठ जाता है, जो पौधे को संक्रमित में सहायक है, संक्रमण के बाद पौधा में ऊपरी भाग पीलापन की चपेट में आ जाता है, जिसके बाद पतियां जंक के धब्बे से दिखाई देने लगते हैं। इस प्रकार के लक्षण वैसे तो जिंक की कमी से भी होते है जिसके चलते किसान इसकी पहचान नहीं कर सकते।
टंग्रो वायरस रोग का ये है देशी जुगाड़
देसी जुगाड़ वायरस की रोकथाम हेतु किसान कर सकते हैं, जिसमें बहुत ही कम खर्चे में इसका इलाज कर सकते हैं, एवं इस रोग के प्रसार को आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं, इस हेतु कृषि डॉक्टर कहते है कि किसान धान की फसल में पीला बल्ब लगाए, जिसके कारण हरा फुदका प्रकाश की उपस्थिति में इस ओर आकृषित होगा, इसके लिए बल्ब के नीचे टब में पानी डालकर उसमें इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) नाम का कीटनाशक डाल सकते हैं , बल्ब की ओर आने वाले कीट टब में गिरेंगे और वह कीट मर जाएंगे, ऐसा करने से टंग्रो वायरस के प्रसार को रोक सकते हैं।
टंग्रो वायरस के रोकथाम हेतु कौन सी दवा डाले?
किसान साथियों टंग्रो वायरस रोग से रोकथाम हेतु आप थियामेथोक्साम 25% (Thiamethoxam 25% WDG को 80 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव कर दें, या फिर आप इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) 100 ml प्रति एकड़ के हिसाब से दवा का छिड़काव कर दे। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि घोल बनाते समय 100 लीटर से 125 लीटर पानी का इस्तेमाल ज़रूर करें , उपरोक्त दवा में से एक दवा 15 से 20 दिन के समय अंतराल पर दवा का छिड़काव फिर से दोहरा सकते हैं, जिसके कारण हरा फुदका की रोकथाम हो जाएगी और टंग्रो वायरस का प्रसार रुक जाएगा ।
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Conclusion:- साथियों उपरोक्त जानकारी मीडिया रिपोर्ट एवं कृषि पादप रोग विशेषज्ञ आदि से उपलब्ध social media पर उपलब्ध को आसान बना कर आप तक पहुंचाई गई है, ताकि किसान आसानी से सस्ते दामों पर फसल को बचा सकें। अपनी आवाज किसी भी प्रकार की पुष्टि नहीं करता