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Cotton Disease and insects | कपास की फसल में ये रोग ओर कीट है बहुत नुकसानदायक, ऐसे करें प्रबंधन

Cotton Disease and insects | किसान भाइयों जैसा कि आपको पता है कि इस समय कपास की फसल में फूल आने लगी है, इस समय कई प्रकार के कीट पतंग एवं रोग लगने की संभावना अधिक होती है, ऊपर से इस समय मानसून का समय चल रहा है, जिसके कारण अधिक नमी भी इन रोगों को ओर अधिक फैलने में सहायक सिद्ध हो सकती है ।

यानी इन रोगों को समय रहते ही बचाव के उपाय किसानों को कर लेने चाहिए, वरना काफी नुकसान हो सकता है, इन सभी प्रकार के रोगों ओर कीटो से कैसे कपास की फसल को बचाया जाए एवं कौन कौन से रोग ओर कीट कपास में पाए जाते हैं इसके बारे में इस लेख में हम जानेंगे।

Cotton Disease and insects | जो किसान कपास की खेती करते हैं उन किसानों को कपास की फसल में इस प्रकार के कीट लगने एवं रोग लगने से काफी समस्या का सामना करना पड़ता है उनके लिए नियंत्रण करना जरूरी हो जाता है जो इन फसलों की पैदावार पर सीधा असर डालते हैं।

 

किसान साथियों इन सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान एवं कीट रोग प्रबंधन हेतु जुड़ी जानकारी इस लेख में हम आपके साथ साझा करने वाले हैं तो चलिए विस्तार से इन कीट एवं रोगों के बारे में जानते हैं एवं इनका प्रबंधन कैसे करें सभी जानकारी इस लेख में हम बताने वाले हैं।

 

कपास की फसल में लगने वाले कीट के लक्षण

A. मिली बग:_ किसान साथियों इस किट की बात करें तो यह सफेद मॉम की तरह पौधों के विभिन्न भागों से चिपका रहता है जो यह कट शिशु वेदक पौधे के लगभग सभी भागों को चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है इस किट से ग्रसित पौधा झाड़ीनुमा बोना रह जाता है एवं टिंडे कम लगते हैं तथा आकार छोटा और खराब रह जाता है। इस किट से ग्रसित पौधे से मधु स्राव होने लगता है, जिन पर चीटियां आकर्षित होती है और इस कीट को एक पौधे से दूसरे पौधे तक ले जाती है। इसके बाद पौधा मरने लगता है।

 

B. हरा मच्छर या फुदका (jesid):_ इस कीट की बात करें तो साथियों कपास में शिशु ओर वयस्क पतियों की निचली सतह से रूस चूसकर फसल को नष्ट करने लगती हैं, जिसके कारण पतियां टेडी मेढ़ी आकर लेकर नीचे की ओर मुड़ने लगती है और आखिर मैं सुख कर गिरने लगती है,Cotton Disease and insects

c. सफेद मक्खी:_ किसान साथियों इस कीट का प्रकोप मुख्यत फूल आने से पहले फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसके कारण फसल में मरोड़िया रोग फैल जाता है, इसके कारण फसल की शिशु और वयस्क अवस्था में ही पौधे का रस चूसने के बाद हानि पहुंचा सकती है। इस कीट के चलते मधु स्राव होने पर काली फफूंद आने के कारण पत्तों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है, Cotton Disease and insects

D. चेपा कीट:- किसान साथियों इस प्रकार के कीट एवं रोग की बात करे तो चेपा के शिशु व वयस्क पत्तों व मुलायम वृद्धिशील प्ररोहों से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। इससे पत्ते टेढ़े-मेढ़े होकर मुरझाने लगते हैं। और आखिर मैं पत्तियां गिरने लगती है।

E. कपास में धूसर बग (डस्की रोग) किसान साथियों इसके लक्षण की बात करें तो वयस्क 4-5 मि.मी. लम्बे राख जैसे रंग या फिर भूरे रंग ओर मटमैले सफेद पंखों के जैसे होते हैं, निम्फ छोटे एवं बगैर पंख के होते हैं, इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही कच्चे बीजों से रस चूसते हैं, जिसके कारण पकने में समस्या होती है और वजन भी कम होता है, इसके अलावा कपास निकालते समय वयस्क के पिस जाने रूई पर धब्बे पड़ने से रूई की गुणवत्ता व मार्केट रेट घटता है ।

कीट एवं रोग प्रबंधन कैसे करें?

किसान साथियों सबसे पहले तो कपास की बुवाई से पहले कृषि वैज्ञानिकों द्वारा की गई सिफारिस के आधार पर ही उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करना आवश्यक है, इसके अलावा अच्छे से जुताई करने के बाद ही बुवाई करे जिससे जीवाणु एवं कीटाणु मर जाएं एवं नाइट्रोजन की मात्रा कम रखे, Cotton Disease and insects

कीट एवं रोग की रोकथाम हेतु दवाई

किसान साथियों यदि इस प्रकार के रोग कपास में फैल जाते हैं तब आवश्यकतानुसार बिकेन्थ्रिन 8% + क्लॉथियानिडिन 10% एस.सी 10 मि.ली / 10ली. या फिप्रोनिल 7% + फ्लोनिकैमिड 15% डब्ल्यूडी. + जी 8 ग्रा./ 10ली. सल्फोक्साफ्लोर 21.8% एस.सी 7.5 मि.ली / 10 लीटर पानी में मिलाकर उपयुक्त मौसम को देखते हुए छिड़काव करें।

 

इसके अलावा फुदका कीट हेतु आवश्यकतानुसार एसिटामिप्रिड 20% एसपी 1 ग्रा./ 10ली. या एफिडोपाइरोपेन 50 ग्राम / ली डीसी 20 मि.ली/10ली. या फ़्लोनिकैमिड 50% डब्ल्यू. जी 3 ग्रा./ 10ली. या आइसोसायक्लोसेरम 9.2% डी.सी 4 मि. ली / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए ।

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अपनी आवाज:- किसान साथियों अपनी आवाज वेबसाइट पर बेहतर रिसर्च एवं टीम की मेहनत से आप तक कृषि से जुड़ी जानकारी एवं अन्य फसलों की जानकारी के साथ साथ कृषि योजनाएं, नई नई उन्नत किस्म के बारे में जानकारी दी जाती है, हालांकि यह मीडिया ग्रुप एवं अन्य स्त्रोतों से जुड़े लोगों से सलाह लेकर प्रसारित की जाती है अतः कृषि विभाग के अनुसार पहले अच्छे से रोगों के बारे में पता करके ही फसलों में कोई भी दवाई का इस्तेमाल करें, अपनी आवाज किसी भी लाभ हानि के लिए जिम्मेवार नहीं हैं। आप हमसे अनेक सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़कर नई नई जानकारी के बारे में पढ़ सकते है।

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